यह लेख पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के औषधीय लाभों पर प्रकाश डालता है. वैज्ञानिक प्रमाणों व आयुर्वेदिक दृष्टिकोण के साथ साथ घरेलू नुस्खों द्वारा विभिन्न बीमारियों में इसके उपयोग की जानकारी दी गई है.
परिचय- क्या है पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata)?
पत्थरचट्टा जिसे वैज्ञानिक रूप से Kalanchoe Pinnata कहते हैं एक (succulent) रसीला पौधा है इसकी पत्तियां मोटी व रसयुक्त होती हैं. इसे आमतौर पर “लाइफ प्लांट” “एयर प्लांट” या “मिरेकल लीफ” भी कहा जाता है.
भारत में यह आसानी से गमलों में उग जाता है व सदाबहार पौधा है. आयुर्वेद में पत्थरचट्टा को पाषाणभेद पणपुट्टी व भस्मपथरी जैसे नाम दिए गए हैं जिनका शाब्दिक अर्थ है “पत्थर को भेदने या तोड़ने वाला” जो इसके सबसे प्रसिद्ध उपयोग पथरी तोड़ने की ओर इशारा करता है. परंतु इसका यही एकमात्र लाभ नहीं है;
इस पौधे को स्वास्थ्य के लिए वरदान भी माना गया है व इसके नियमित सेवन व उपयोग से अनेक समस्याओं में राहत मिल सकती है. नीचे हम पत्थरचट्टा के 10 प्रमुख फायदे व उपयोगों पर विस्तार से जानेगे, जिनकी पुष्टि आधुनिक विज्ञान व पारंपरिक चिकित्सा दोनों करते हैं.
पत्थरचट्टा के वैज्ञानिक प्रमाण से पुष्टि हुए औषधीय गुण
आधुनिक वैज्ञानिक शोध पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के कई चमत्कारी औषधीय गुणों की पुष्टि करते हैं. अध्ययनों में यह पाया गया है कि इस पौधे में मौजूद जैव सक्रिय यौगिकों में रोगाणुरोधी कैंसररोधी परजीवीरोधी व लीवरसंरक्षक गुण मोजूद हैं. यानि की पत्थरचट्टा संक्रमण से लेकर गंभीर बीमारियों तक में लाभ पहुंचा सकता है. एक शोध के अनुसार Kalanchoe pinnata को पारंपरिक चिकित्सा में सूजन कम करने एवं मधुमेह नियंत्रित करने व कैंसर तक में उपयोग किया गया है.
विशेष रूप से पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के पत्तों से प्राप्त अर्क पर हुए प्रयोगों ने सूजनरोधी व दर्दनाशक प्रभाव दिखाए हैं. प्रयोगशाला मे हुए एक अध्ययन में इस पौधे के अर्क ने चूहों में सूजन को कम किया व दर्द से भी राहत दिलाई.
वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें मौजूद Flavonoids व अन्य यौगिक शरीर में सूजन व दर्द पैदा करने वाले रसायनों जैसे Prostaglandins को रोक देते हैं जिससे प्राकृतिक दर्द निवारण होता है.
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पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) में उच्च रक्तचाप को कम करने वाले गुण भी पाए गए हैं. पशु अध्ययनों में यह देखा गया कि जब इसकी पत्तियों का रस नियंत्रित मात्रा में दिया गया तो बिल्ली जैसे जानवरों में एड्रेनालिन से बढ़ा हुआ blood pressure गिरने लगा. खून का दबाव जितनी ज्यादा मात्रा में अर्क दिया जाता है उतना ज्यादा कम हुआ है . यह परिणाम संकेत देते हैं कि पत्थरचट्टा उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक हो सकता है.
इसी तरह anti diabetic गुणों के एक अध्ययन में इसके सेवन से मधुमेह ग्रस्त जानवरों में ब्लड शुगर लेवल सामान्य लेवल तक लौट आया जो की इसके मधुमेह रोधी क्षमता का संकेत है.
इसके अलावा पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) का अर्क Antioxidants क्षमता भी दिखाता है अर्थात् यह शरीर में हानिकारक मुक्त कणों को निष्क्रिय करके कोशिकाओं की रक्षा कर सकता है. कुछ प्रारम्भिक शोध तो पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) में एंटीकैंसर प्रभाव भी बताते हैं जिसके अनुसार यह कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में सक्षम कुछ घटकों से युक्त है.
कुल मिलाकर आधुनिक विज्ञान पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) को एक बहुगुणी औषधीय पौधा माना जाता है जिसमें सूजन रोधी दर्दनाशक एंटीबायोटिक रक्तचाप नियंत्रक मधुमेह रोधी Antioxidants व संभवतः कैंसर रोधी गुण भी मौजूद हैं.
इन गुणों के कारण इसे विभिन्न बीमारियों के इलाज में परंपरागत रूप से उपयोग किया जाता रहा है व आज भी शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित कर रहा है.
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata)
प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) को अत्यंत उपयोगी जड़ी बूटी माना गया है. आयुर्वेदिक मे गुणों की बात करें तो प्रख्यात आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार पत्थरचट्टा स्वाद में मधुर कटु तिक्त व कषाय (मीठा तीखा कड़वा व कसैला) होता है तथा गुण में शीतल (ठंडा) लघु (हल्का) स्निग्ध (चिकनाईयुक्त) व तीक्ष्ण प्रकृति का है.
इसे त्रिदोषहर कहा गया है यानी यह वात पित्त कफ तीनों दोषों को संतुलित करने में समर्थ है. विशेषतः आयुर्वेद में इसे पाषाणभेद वर्ग में रखा गया है – जिसका अर्थ ही ‘पत्थर को तोड़ने वाला’ है – क्योंकि इसका मुख्य उपयोग गुर्दे व मूत्राशय की पथरी को तोड़कर निकालने में होता है.
शास्त्रों में कहा गया है कि पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) मूत्रविरेचक (diuretic) है जो पेशाब की मात्रा बढ़ाकर पथरी व गंदगी को बाहर निकालता है तथा वस्तिशोधक है जो मूत्रमार्ग व मूत्राशय को शुद्ध रखता है.
आयुर्वेद ग्रंथों व लोक चिकित्सा में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के व और भी कई फायदे बताए गए हैं: यह अर्श यानि की बवासीर में लाभकारी है गुल्म या अध्यामान या पेट में गठान को दूर करने वाला मूत्र संबंधी विकार व संक्रमण में आराम देने वाला हृदय संबंधी रोग में सहायक योनिरोग -स्त्री रोग जैसे सफेद पानी की समस्या में उपयोगी तथा प्रमेह (मधुमेह व अन्य मूत्र विकार) में लाभकारी बताया गया है. इसके अतिरिक्त यह घाव भरने सूजन व दर्द कम करने व त्वचा रोगों में भी प्रयोग होता आया है.
आयुर्वेद में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) को एक ऐसी बहुउपयोगी औषधि माना गया है जो शरीर के विभिन्न तंत्रों पर सकारात्मक प्रभाव डालती है व जटिल रोगों में भी फायदा पहुंचाती है. चरक संहिता आदि में प्रत्यक्ष इसका उल्लेख भले न मिले लेकिन क्षेत्रीय नामों से यह लोक औषधि के रूप में प्रसिद्ध रहा है.
बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण द्वारा भी इसे एक “ज़बरदस्त गुणकारी” जड़ी बूटी बताया गया है जो पथरी से लेकर आँख कान खांसी व त्वचा विकारों तक में उपयोगी है.
आयुर्वेदिक दृष्टि से पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) का सबसे बड़ा गुण यही है कि उचित मात्रा में सेवन से यह बिना किसी साइड इफेक्ट के कई रोगों को समाप्त करने की क्षमता रखता है बशर्ते इसे सही तरीके व मात्रा में प्रयोग किया जाए.
घरेलू उपचार में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) का उपयोग कैसे करें?
पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के पत्तों का उपयोग घरेलू उपचारों में लंबे समय से किया जाता रहा है. इसके इस्तेमाल के कुछ आसान व पारंपरिक तरीके निम्न हैं:
- कच्चे पत्तों का सेवन: सबसे सीधा तरीका है इसकी ताज़ी पत्तियों को धोकर चबाना. प्रायः 2 से 3 कोमल पत्तियां सुबह खाली पेट हल्के गुनगुने पानी के साथ चबाकर खाई जाती हैं. इससे पत्तों का रस शरीर में जाता है व अपने गुण दिखाता है. पथरी की समस्या में यह बेहद प्रचलित नुस्खा है.
- पत्तों का रस : पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) की पत्तियों को पीसकर या कूटकर उसका रस निकाला जाता है. लगभग 5 से 10 मि.ली. हरे रस को आप सीधे भी पी सकते हैं या बताशे में भिगोकर खा सकते हैं. बच्चों या जिन्हें कच्चा रस पीना कठिन लगे वे इसमें शहद मिला सकते हैं. यह रस पेट सम्बन्धी विकार पथरी व हाई बीपी जैसी समस्याओं में उपयोग किया जाता है.
- पत्तियों का काढ़ा: पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) का काढ़ा बनाना भी एक लोकप्रिय घरेलू उपाय है. 5 से 10 ताज़ी पत्तियां लेकर आधा लीटर पानी में उबालें जब पानी उबलकर आधा रह जाए तो छान लें. इस काढ़े को दिन में 1 से 2 बार गुनगुना पीया जाता है , स्वाद सुधारने के लिए इसमें एक चुटकी सेंधा नमक या थोड़ा शहद भी मिलाया जा सकता है. यह उपाय पथरी मूत्र संक्रमण व स्त्रियों में अधिक स्ल्यूकोरिया की समस्या में लाभदायक माना जाता है.
- पत्तों का लेप: बाहरी प्रयोग के लिए पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के पत्तों का लेप बनाया जाता है. इसके लिए ताज़ी पत्तियों को अच्छी तरह धोकर सिल बट्टे पर पीस लें या मिक्सर में दरदरा पीस लें. इस हरे लेप को हल्का गर्म करके प्रभावित अंग पर लगाया जाता है. सिरदर्द या माइग्रेन में इसका लेप माथे पर लगाने से आराम मिलता है. इसी प्रकार जोड़ों के दर्द में इसे जोड़ों पर तथा खुली चोट या घाव पर इसे मलने से सूजन कम होती है व घाव जल्दी भरते हैं. पत्थरचट्टा का लेप त्वचा की फोड़े फुंसी पर भी उपयोग किया जाता है ताकि मवाद जल्दी सूख जाए.
- अन्य प्रयोग: कुछ पारंपरिक नुस्खों में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के रस की 1 से 2 बूंदें कान के दर्द में कान में डालने का ज़िक्र मिलता है जिससे कानदर्द में राहत मिलती है. इसी तरह आँखों में जलन होने पर पत्तों को पीसकर आंखों के बाहर लगाना (आँखों में नहीं) लाभकारी कहा गया है. खांसी में पत्थरचट्टा के रस को शहद के साथ लेने से कफ निकलकर छाती साफ होती है – यह फेफड़ों के लिए भी लाभकारी है.
इन घरेलू उपायों को अपनाते समय ध्यान रहे कि सफाई का ख़ास ख्याल रखें जैसे की पत्तों को अच्छी तरह धोएं व अत्यधिक मात्रा से बचें.
विभिन्न बीमारियों में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के 10 फायदे व उपयोग
अब हम पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के दस प्रमुख औषधीय फायदों पर नज़र डालते हैं जिन्हें आम बीमारियों के संदर्भ में समझा गया है. इन बिंदुओं में हम जानेंगे कि किस बीमारी या समस्या में पत्थरचट्टा कैसे असर करता है व इसका प्रयोग किस रूप में किया जा सकता है:
1. किडनी की पथरी का इलाज करना
पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) का सबसे विख्यात लाभ है गुर्दे की पथरी को तोड़ना. वास्तव में आयुर्वेद में इसे पाषाणभेद नाम इसी गुण के चलते दिया गया है. इस पौधे के सक्रिय तत्व मूत्र प्रणाली पर प्रभाव डालकर पथरी को छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ सकते हैं व मूत्र मार्ग से बाहर निकालने में मदद करते हैं.
वैज्ञानिक अनुसंधान भी इस लोकविश्वास की पुष्टि करते हैं – चूहों पर हुए एक अध्ययन में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के पत्तों के हाइड्रो अल्कोहलिक अर्क ने कैल्शियम ऑक्सलेट जैसी पथरी बनाने वाले तत्वों को मूत्र में जमा होने से रोका तथा पहले से बनी पथरी के आकार को घटा दिया. परिणामों में देखा गया कि विभिन्न खुराक पर इस अर्क ने पथरी रोधी (antiurolithiatic) असर दिखाया है व पारंपरिक रूप से पथरी के इलाज में इसके इस्तेमाल को उचित ठहराया.
कैसे उपयोग करें: अगर आपको किडनी या मूत्राशय में पथरी की समस्या है तो पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) एक रामबाण घरेलू उपचार हो सकता है. रोज़ सुबह खाली पेट 2 से 3 ताज़ी पत्तियों को चबा चबाकर एक गिलास गुनगुने पानी के साथ निगलें.
इसके अलावा 5 मि.ली. पत्थरचट्टा के पत्तों का रस लें व उसमें चुटकी भर काली मिर्च पाउडर मिलाकर पिए यह भी पथरी गलाने में सहायक माना जाता है. दिन में दो बार ऐसा करने से बहुत लाभ मिलता है.
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तीसरा विकल्प है पत्थरचट्टा का काढ़ा: लगभग 15 से 20 पत्तों को आधा लीटर पानी में उबालकर पानी जब आधा बचे तब यह छानकर सुबह शाम पिए , इस तरह नियमित 2 से 3 हफ़्तों के प्रयोग से अक्सर पेशाब के रास्ते पथरी टूटकर निकलने लगती है. हल्की फुल्की पथरी होने पर यह नुस्खा बेहद कारगर माना जाता है.
2. मूत्र संक्रमण व पेशाब संबंधी विकार
मूत्र मार्ग में संक्रमण या पेशाब में जलन रुकावट जैसी समस्याओं में भी पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) फायदेमंद पाया गया है. इसका प्राकृतिक मूत्रवर्धक (diuretic) गुण शरीर से अधिक पानी व विषैले तत्वों को पेशाब के जरिए बाहर निकालने में मदद करता है. साथ ही इसमें रोगाणुरोधी गुण होने के कारण यह मूत्रमार्ग में मौजूद हानिकारक जीवाणुओं को नियंत्रित कर सकता है. पारंपरिक तौर पर यदि पेशाब कम बन रही हो जलन के साथ गिर रही हो या यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन हो तो पत्थरचट्टा का सेवन कराने की सलाह दी जाती है.
कैसे उपयोग करें: मूत्र संक्रमण में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के काढ़े का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है. 5 से 6 पत्तों को 2 कप पानी में उबालकर आधा कप रह जाने तक उबालें फिर इसे छानकर गुनगुना पीएं व स्वाद के लिए शहद मिला लें. यह दिन में 1से 2 बार कुछ दिनों तक लेने से पेशाब में संक्रमण से राहत मिलती है. साथ ही पेशाब खुलकर आता है व जलन कम होती है. पत्थरचट्टा का रस + शहद का मिश्रण भी दिन में दो बार लिया जा सकता है. ध्यान रहे कि यदि संक्रमण गंभीर हो तो डॉक्टर द्वारा दिए गए एंटीबायोटिक के साथ सहायक उपचार के रूप में ही इन घरेलू उपायों का इस्तेमाल कर सकते है .
3. उच्च रक्तचाप ( High blood pressure) में लाभ
आजकल हाई blood pressure (उच्च रक्तचाप) एक आम समस्या हो गई है व पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) इसको नियंत्रित करने में आश्चर्यजनक तौर पर मददगार साबित हो सकता है. आधुनिक अनुसंधान बताते हैं कि पत्थरचट्टा के पत्तों में रक्त वाहिकाओं को प्रसारित (vasodilate) करने व हृदय को शांत करने वाले गुण हैं. पत्तों का रस शरीर में जाने पर धीरे धीरे blood pressure कम करने में योगदान देता है. एक अध्ययन में जानवरों पर पत्थरचट्टा के रस ने बढ़े हुए blood pressure को खुराक के अनुपात में घटा दिया जिससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि यह पौधा प्राकृतिक एंटी हाइपरटेंसिव दवा की तरह काम कर सकता है.
कैसे उपयोग करें: हाई बीपी से ग्रस्त लोग पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के पत्तों का रस नियमित लेकर फायदा उठा सकते हैं. 4 से 5 ताज़ी पत्तियों को धोकर पीस लें व इसका रस निकाल लें. एक गिलास पानी में इस रस की लगभग 5 बूंदें मिलाएं व सुबह शाम पिएं. शुरुआत में दिन में एक बार लें व फिर दिन में दो बार तक बढ़ा सकते हैं.
पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) का रस High blood pressure को कंट्रोल करने में कारगर है. इस उपाय के दौरान अपना blood pressure मॉनिटर करते रहें. पत्थरचट्टा पोटैशियम समेत ऐसे खनिज प्रदान करता है जो रक्तचाप नियंत्रित रखने में भूमिका निभाते हैं.
याद रखें कि यह कोई ऐलोपेथिक दवा नहीं है अतः यदि आपका बीपी बहुत अधिक है तो डॉक्टर की सलाह व दवा के साथ ही इसका पूरक के रूप में उपयोग करें.
4. सूजन व दर्द से राहत (प्राकृतिक दर्दनिवारक)
पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) को प्राकृतिक दर्दनाशक कहा जा सकता है. इसमें सूजन रोधी गुण होते हैं जो शरीर में सूजन व दर्द को कम करते हैं. यदि आपको जोड़ों में दर्द ,सिरदर्द या किसी चोट के कारण सूजन है तो पत्थरचट्टा राहत दिला सकता है. यह दर्द के कारणों पर दो तरह से काम करता है:
पहली यह सूजन कम करता है जिससे दर्द स्वतः घटता है; दूसरी यह सीधे दर्द संवेदी तंत्र को भी शांत करता है.
Ojewole आदि शोधकर्ताओं ने पाया कि पत्थरचट्टा का रस दर्द रोकने में उतना ही प्रभावी हो सकता है जितना ऐस्पिरिन जैसे दर्दनिवारक बिना ज्यादा साइड इफेक्ट के.
Ferreira et al (2014) नामक अध्ययन में तो विशेष रूप से इसके पत्तों से निकाले गए यौगिकों ने चूहों में सूजन व दर्द दोनों को काफी हद तक कम किया.
कैसे उपयोग करें: जोड़ों के दर्द या सूजन में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata)का पत्तियों का लेप सबसे बेहतर काम करता है. कुछ पत्तों को हल्का सा गर्म करें व हाथ से मसलकर दर्द वाले जोड़ पर बांध दें या मल दें.
आप पिसे हुए पत्तों का पेस्ट बनाकर पट्टी से बांध भी सकते हैं. इससे स्थानीय सूजन कम होगी व दर्द में आराम मिलेगा. सिरदर्द या माइग्रेन में पत्तियों का पेस्ट माथे पर लगाने से तेज़ सिरदर्द भी कुछ ही मिनटों में हल्का होने लगता है. इसे आधे घंटे तक माथे पर रखकर फिर पानी से धो लें.
पेट दर्द ,ऐंठन या गैस के कारण में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) का रस लाभ करता है – 5 मि.ली. रस में 1 से 2 चुटकी सोंठ पाउडर मिलाकर पीने से गैस संबंधी दर्द छूमंतर हो जाता है. यह नुस्खा पेट की अंदरूनी सूजन या इन्फेक्शन को भी ठीक करता है. इस प्रकार पत्थरचट्टा बाहरी व आंतरिक दोनों तरह के दर्द निवारण में प्रयोग किया जा सकता है.
5. घाव भरना व त्वचा के लिए लाभ
पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) को लोकभाषा में कहीं कहीं ‘ज़ख्म हल्दी या घाव की औषधि’ भी कहा जाता है क्योंकि यह घाव भरने की प्रक्रिया को तेज़ करता है. इस पौधे की पत्तियों में एंटीसेप्टिक गुण हैं जो घाव में संक्रमण नहीं होने देते तथा कॉलेजन संश्लेषण को बढ़ाकर नई त्वचा बनने में मदद करते हैं.
एक शोध में पत्थरचट्टा के इथेनॉलिक पत्तियों के अर्क ने चूहों में घाव को तेजी से भरने में मदद की व चोट के निशान भी हल्के किए. पत्तियों का लेप चोट पर लगाने से रक्तस्राव रुकता है व सूजन कम हो जाती है जो घाव भरने के लिए अनुकूल माहौल बनाती है.
आयुर्वेद में भी पत्थरचट्टा को व्रणरोपण (wound healing) गुण वाला कहा गया है. त्वचा पर फोड़ा फुंसी जलन या कीड़े के काटने पर भी इसका प्रयोग होता रहा है. पत्थरचट्टा में मौजूद कुछ एंटीबैक्टीरियल तत्व त्वचा के संक्रमण को दबाते हैं इसीलिए इसे कटे फटे स्थान पर लगाने से इन्फेक्शन नहीं होता व त्वचा तेजी से ठीक होती है.
कैसे उपयोग करें: किसी कट या छोटे ज़ख्म पर पत्थरचट्टा की 1 से 2 पत्तियां हल्की गर्म करके सीधे बांधी जा सकती हैं. पारंपरिक तौर पर किया जाता है कि पत्तियों को आग पर हल्का सेककर नरम कर लें व फिर साफ पट्टी की तरह घाव पर लपेट दें. हर 4से 5 घंटे बाद पत्ती बदलें.
वैकल्पिक रूप से पत्तियों को पीसकर पेस्ट घाव पर लगाएं व पट्टी बांध दें. दिन में दो बार पट्टी बदलें व ताज़ा पेस्ट लगाएं जब तक घाव भर न जाए.
Note: गहरे घाव या गंभीर जलन में डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें – पत्थरचट्टा ऐसे मामलों में सहायक उपचार भर है. मुंह के छाले होने पर इसके 2 से 3 पत्तों को धोकर चबा सकते हैं, इसका रस मुँह के घावों को ठीक करने में मदद करता है
त्वचा पर खुजली छोटी फुंसियां या कीटदंश की स्थिति में पत्थरचट्टा का रस या लेप लगाने से ठंडक मिलती है . एंटी एलर्जिक गुणों के चलते यह त्वचा की जलन को शांत कर सकता है.
6. महिलाओं के रोगों में लाभ (ल्यूकोरिया व योनि संक्रमण)
महिला स्वास्थ्य से जुड़े कुछ मामलों में भी पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) उपयोगी सिद्ध हुआ है. खासकर योनि संक्रमण या ल्यूकोरिया की समस्या में आयुर्वेद में पत्थरचट्टा का प्रयोग बताया गया है. अधिक सफेद डिस्चार्ज होने पर संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है व जलन खुजली जैसी परेशानी होती है.
पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) में उपस्थित एंटी फंगल तथा एंटी बैक्टीरियल गुण इन संक्रमणों से लड़ने में मदद करते हैं.साथ ही साथ इसका कषाय (astringent) स्वभाव अतिरिक्त स्राव को कम करता है. भष्मपथरी नाम से आयुर्वेद में वर्णित यह पौधा गर्भाशय व योनि मार्ग की सफाई में सहायक माना गया है.
कैसे उपयोग करें: योनि संक्रमण या अत्यधिक स्राव में पत्थरचट्टा का काढ़ा पीना लाभदायक माना जाता है. 2 कप पानी में 5 से 6 पत्थरचट्टा की पत्तियों को उबालें जब पानी आधा रह जाए तो उसे छानकर सुबह शाम पिये . स्वाद के लिए आप इसमें थोड़ा सा शहद मिला सकती हैं. यह काढ़ा शरीर से विषैले तत्व बाहर निकालने में भी मदद करता है व योनि स्राव को कम करता है. कुछ महिला रोग विशेषज्ञ पारंपरिक तौर पर सलाह देते हैं कि पत्थरचट्टा की साफ पत्तियों को पीसकर उनका रस 1 से 2 चम्मच सुबह सेवन करने से भी ल्यूकोरिया में लाभ होता है. यदि लक्षण गंभीर हों तो चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लेवे .
7. पाचन में सुधार एवं पेट के विकार
पेट संबंधी तकलीफों में भी पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) एक उपयोगी घरेलू उपाय है. आयुर्वेद में इसे सारक कहा गया है जिसका मतलब होता है आंतों को चालना देने वाला.
इसकी पत्तियों का खट्टा नमकीन रस पेट की आँतों में एंजाइम को संतुलित कर पाचन में मदद करता है. अगर अपच या गैस के कारण पेट दर्द हो रहा हो भूख न लग रही हो तो पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) राहत दिला सकता है. यह पेट के अल्सर व घावों में भी फायदेमंद माना गया है –
पारंपरिक प्रयोग में पत्थरचट्टा का रस पेट के छाले (गैस्ट्रिक अल्सर) में आराम देने हेतु इस्तेमाल किया गया है. इसके anti inflammatory गुण आँतों की सूजन कम कर सकते हैं व हेपेटोप्रोटेक्टिव (यकृत रक्षक) गुण लीवर को सुरक्षित रखने में सहायक हैं. इसलिए यह पाचन तंत्र को समग्र रूप से सपोर्ट करता है.
कैसे उपयोग करें: पाचन सुधारने के लिए सुबह खाली पेट 5 मि.ली. पत्थरचट्टा का रस 1 चम्मच शहद में मिलाकर लें. यह भूख बढ़ाने में भी मदद करेगा. अपच या गैस होने पर पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के रस में सोंठ मिलाकर लेने से गैस निकल जाती है व पेट हल्का होता है. कब्ज़ की शिकायत में आप पत्थरचट्टा की 2 पत्तियां रात को चबा लें ,यह हल्का सा रेचक प्रभाव देगा जिससे सुबह पेट साफ होने में सहायता मिलेगी. ध्यान दें गंभीर कब्ज में इसकी जगह इसबगोल या डॉक्टरी सलाह लें.
पेट के अल्सर में इसके पत्तों का काढ़ा जो कि एंटासिड गुण भी रखता है दिन में एक बार लेने से लाभ देखा गया है परंतु अल्सर की अवस्था में बिना डॉक्टरी सलाह कुछ भी न करें.
8. खाँसी सर्दी व श्वसन संबंधी लाभ
लोक चिकित्सा में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) को खांसी की दवा के रूप में भी जाना जाता है. इसका रस गले में खराश व खांसी को शांत करने में मदद करता है. पत्थरचट्टा में anti inflammatory गुण होने से गले की सूजन कम होती है व Antimicrobial गुण होने से किसी संक्रमण जैसे बैक्टीरियल गले में इन्फेक्शन पर भी असर पड़ता है. साथ ही यह कफ को ढीला करके निकालने में मदद कर सकता है इसलिए इसे एक्सपेक्टोरेंट प्रभाव वाला भी माना जा सकता है.
आयुर्वेदिक विश्लेषण के अनुसार पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) स्वाद में कटु तिक्त भी है जो कफ दोष को कम करता है. इसकी पत्तियों का रस फेफड़ों में जमाव को कम करता है – कुछ शोधों में पत्थरचट्टा के अर्क को दमा या अस्थमा जैसी स्थिति में श्वसन नलियों को आराम देने ब्रोंकोडाइलेशन हेतु भी कारगर पाया गया है. हालांकि यह क्षेत्र व अधिक शोध की मांग करता है पर पारंपरिक प्रयोग इसके पक्ष में हैं.
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कैसे उपयोग करें: खांसी या गले में बलगम होने पर पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) की 2 से 3 कोमल पत्तियां तोड़कर उनका रस निकाल लें. इस रस को 1 चम्मच शहद के साथ मिलाकर दिन में दो बार लें खासकर सुबह व रात. शहद के साथ मिलाने से रस का तीखापन कम होगा व असर बढ़ जाएगा. कुछ ही खुराक में कफ ढीला होकर बाहर आने लगेगा व गला साफ होगा.
साधारण सर्दी जुकाम में पत्थरचट्टा की पत्तियां चबाना या उसका काढ़ा पीना इम्युनिटी बूस्ट करने में मदद करता है जिससे आप जल्दी ठीक होते हैं. चूंकि इसमें ऐंटी वायरल गुण भी कुछ हद तक देखे गए हैं यह सर्दी पैदा करने वाले विषाणुओं से लड़ने में सहायक हो सकता है.
ध्यान दें: यदि खांसी बहुत ज्यादा दिन से है या सांस फूल रही है तो डॉक्टर को दिखाएं, पत्थरचट्टा सिर्फ सामान्य खांसी जुकाम में घरेलू उपचार के रूप में लें.
9. मधुमेह (डायबिटीज) को नियंत्रित करना
आयुर्वेद में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) को प्रमेह रोगों में लाभकारी बताया गया है जिसमें डायबिटीज भी शामिल है. आधुनिक रिसर्च से पता चलता है कि पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) का नियमित सेवन ब्लड शुगर लेवल को कम करने में मददगार हो सकता है.
Ojewole 2005 के अध्ययन में डायबिटीज ग्रस्त चूहों को पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) की पत्तियों का रस देने पर उनकी रक्त शर्करा में उल्लेखनीय कमी देखी गई व 24 घंटे के भीतर ग्लूकोज़ का स्तर सामान्य सीमा के करीब पहुंच गया. यह इसकी (हाइपोग्लाइसेमिक) शर्करा घटाने वाली क्षमता दर्शाता है.पत्थरचट्टा में मौजूद कुछ यौगिक इंसुलिन की कार्यक्षमता को बढ़ा सकते हैं या शरीर में शर्करा के अवशोषण को धीमा कर सकते हैं
हालांकि इस पर अभी गहन शोध चल रहा है. फिर भी पारंपरिक तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में मधुमेह के रोगी को रोज़ सुबह पत्थरचट्टा के कुछ पत्ते खाने की सलाह दी जाती रही है ताकि उनके शुगर पर नियंत्रण बना रहे. साथ ही पत्थरचट्टा कोलेस्ट्रॉल को कम करने में भी सहायक माना जाता है जिससे मधुमेह के साथ जुड़े हृदय रोगों का खतरा घट सकता है
कैसे उपयोग करें: मधुमेह नियंत्रण हेतु आप पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) की 2 पत्तियां सुबह खाली पेट चबा सकते हैं. अगर कड़वाहट ज्यादा लगे तो इनका रस निकालकर पानी या किसी फल के रस में मिलाकर लें.
एक सुझाव यह है कि 5 मि.ली. पत्थरचट्टा के रस को 1 कप करेला के रस में मिला कर पिएं – ये दो प्राकृतिक मधुमेह रोधी तत्व मिलकर व भी प्रभावी हो सकते हैं बशर्ते आपका शुगर लेवल बहुत अधिक न हो. अपने ब्लड ग्लूकोज़ की निगरानी करते रहें क्योंकि जड़ी बूटियाँ कुछ लोगों में तेज़ असर कर सकती हैं.
यदि आप मधुमेह की एलोपैथिक दवा ले रहे हैं तो भी पत्थरचट्टा को बतौर पूरक ले सकते हैं लेकिन अपनी दवा डॉक्टर की सलाह के बिना बंद न करें. यह एक सहयोगी उपचार है पूर्ण विकल्प नहीं. समय समय पर HBA1C आदि परीक्षण कराते रहें व अपने चिकित्सक को प्राकृतिक उपायों के बारे में अवगत कराएं.
10. प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना व अन्य फायदे (संक्रमण से बचाव संभावित कैंसर रोधी असर)
पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) शरीर की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने में भी योगदान देता है. इसके विटामिन व खनिज युक्त पत्ते तथा उनमें मौजूद Antioxidants शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सपोर्ट करते हैं. नियमित उचित मात्रा में सेवन करने से सर्दी जुकाम जैसे सामान्य संक्रमण बार बार नहीं होते. इसमें रोगाणु रोधी (Antimicrobial) तत्व हैं जो शरीर में हानिकारक बैक्टीरिया वायरस फंगस को पनपने नहीं देते. इसी कारण यह त्वचा के इंफेक्शन पेट के संक्रमण मूत्र संक्रमण आदि विविध जगह फायदा पहुंचाता है.
पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) को पारंपरिक चिकित्सा में एंटी एलर्जिक के रूप में भी जाना गया है
चरक संहिता के समानांतर कुछ ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि यह त्वचा की एलर्जी व दमा जैसे एलर्जिक विकारों में लाभदायक है. इसकी पत्तियां शरीर को डीटॉक्सीफाई करने में मदद करती हैं खासकर यकृत व गुर्दे से अवांछित पदार्थ बाहर निकालने में सहायक है. आधुनिक शोध से भी मिला है कि पत्थरचट्टा लीवर व किडनी को सुरक्षित रखने वाला प्रभाव दिखाता है.
एक अन्य बेहद महत्वपूर्ण पहलू है – इसका संभव कैंसर रोधी प्रभाव. हाल ही के कुछ प्रयोगशाला अध्ययनों ने संकेत दिया है कि पत्थरचट्टा के अर्क ने कैंसर कोशिकाओं पर प्रतिकूल असर डाला उनकी वृद्धि को धीमा किया व (एपोप्टोसिस) कोशिका मृत्यु को प्रेरित किया है . खासकर लीवर कैंसर व कुछ प्रकार के सारकॉमा पर इसके सकारात्मक प्रभाव नोट किए गए हैं. उदाहरण के लिए एक अध्ययन में ब्पत्थरचट्टा के पत्तों ने लीवर ट्यूमर से ग्रस्त चूहों में कैंसर कोशिकाओं का प्रसार घटाया. हालांकि ये शोध प्रारंभिक दौर में हैं व मानव पर सीधे निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी पर इस दिशा में जारी शोध पत्थरचट्टा को भविष्य की कैंसर रोधी दवाओं का स्रोत बना सकते हैं.
कैसे उपयोग करें: रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आप पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) को अपनी दिनचर्या में एक सप्लीमेंट की तरह शामिल कर सकते हैं. सप्ताह में 2 से 3 बार 2 पत्तियां चबा लें ,ध्यान रहे ज्यादा मात्रा कड़वी हो सकती है. इससे आपको प्राकृतिक विटामिन व Antioxidants मिलेंगे.
संक्रमण से बचाव के लिए मौसम बदलने पर हफ़्ते में कुछ दिन पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) का काढ़ा या रस पीना लाभकारी होगा – जैसे बरसात में जब फंगल इन्फेक्शन का डर होता है तो 2 से 3 दिन पत्थरचट्टा जरूर लें. कैंसर रोधी संभावनाओं के मद्देनज़र अभी कोई निर्धारित खुराक नहीं है लेकिन आप सामान्य स्वास्थ्य हेतु इसका सेवन करते हैं तो उसके साथ यह फायदे बोनस की तरह होंगे.
ध्यान रखें कि यदि आप किसी गंभीर रोग जैसे कैंसर एड्स किडनी फेल्योर इत्यादि में इसे आज़माना चाहते हैं तो पहले अपने चिकित्सक से चर्चा करें. पत्थरचट्टा प्राकृतिक है लेकिन हर प्राकृतिक चीज़ हर एक के लिए सुरक्षित हो यह ज़रूरी नहीं इसलिए सावधानी व विशेषज्ञ परामर्श ज़रूरी है.
निष्कर्ष व सावधानियाँ
पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) एक बहुमुखी औषधीय पौधा है जो आधुनिक विज्ञान व आयुर्वेद – दोनों में अपनी जगह बना चुका है. इसके चमत्कारी फायदे इसे किडनी स्टोन से लेकर blood pressure दर्द संक्रमण मधुमेह व तमाम रोगों में प्रभावी बनाते हैं. हमने ऊपर 10 प्रमुख लाभों पर चर्चा की पर वास्तव में लोक स्वास्थ्य में इसे व भी कई तरह से उपयोग किया जाता रहा है. वैज्ञानिक प्रमाण इन पारंपरिक दावों की पुष्टि कर रहे हैं कि पत्थरचट्टा में anti inflammatory Antimicrobial antidiabetic, Antioxidants आदि गुण मौजूद हैं जो की स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं. आयुर्वेद तो सदियों पहले से इसे पथरी तोड़ने वाली चमत्कारी बूटी के रूप में पहचान चुका था.
हालांकि किसी भी जड़ी बूटी या औषधि की तरह पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) के उपयोग में भी संतुलन व सावधानी आवश्यक है. अत्यधिक मात्रा में सेवन से बचें – एक अध्ययन में बहुत ज्यादा खुराक देने पर जानवरों में भूख कम लगना सुस्ती व यहां तक कि विषाक्त प्रभाव देखे गए.
अतः सीमित मात्रा प्रतिदिन 2से 4 पत्ते या 5 से 10 मि.ली. रस ही लें. गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाएं बिना डॉक्टर की सलाह के इसका सेवन न करें. यदि कोई गंभीर रोग या पहले से कोई दवा चल रही है तो पत्थरचट्टा शुरू करने से पहले चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लें.
अंत में पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata) एक सुलभ व किफायती औषधि है जो हमारे आस पास पाई जाती है. सही जानकारी व प्रयोग के माध्यम से हम इसके ढेरों लाभ उठा सकते हैं. पारंपरिक ज्ञान व आधुनिक विज्ञान के संगम से पत्थरचट्टा आज एक श्रेष्ठ उपचार विकल्प के रूप में उभर रहा है. अगर इसे उचित शोध के साथ आयुर्वेदिक दवाओं में शामिल किया जाए तो यह जनस्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ी देन साबित हो सकती है.
आप भी इस ‘हरित डॉक्टर’ को अपने घरेलू बगीचे में जगह दें व समय समय पर इसके औषधीय उपहारों का लाभ लेकर अपनी सेहत को बेहतर बनाएं.
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